हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इथियोपिया का दौरा किया, जहां उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘द ग्रेट ऑनर निशान ऑफ इथियोपिया’ से सम्मानित किया गया। वह यह सम्मान पाने वाले पहले विश्व नेता बने, लेकिन यह देश न केवल अपने राजनयिक संबंधों के लिए बल्कि अपने अनोखे समय और कैलेंडर के लिए भी सुर्खियों में रहता है।
इथियोपिया दुनिया से 7 साल पीछे क्यों है?
जहां पूरी दुनिया 2025 खत्म कर 2026 की ओर बढ़ रही है, वहीं इथियोपिया में अभी भी 2018 है। इसके पीछे मुख्य कारण उनका ‘गीज़ कैलेंडर’ है। इथियोपियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च का मानना है कि ईसा मसीह का जन्म 7 ईसा पूर्व में हुआ था, जबकि बाकी दुनिया ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार गणना करती है।
इसी धार्मिक मान्यता के कारण उनका कैलेंडर दुनिया से 7-8 साल पीछे चलता है। इथियोपिया में एक साल में 12 के बजाय 13 महीने होते हैं। पहले 12 महीने 30 दिन लंबे होते हैं, जबकि 13 वां महीना (पाजूम) केवल 5 या 6 दिन लंबा होता है। इथियोपिया में नया साल 1 जनवरी को नहीं बल्कि 11 सितंबर को मनाया जाता है।
समय देखने का तरीका भी अलग है
केवल कैलेंडर ही नहीं, यहां समय की गणना भी अनूठी है। इथियोपिया में दिन की शुरुआत आधी रात को नहीं, बल्कि सूर्योदय (सुबह 6 बजे) से होती है। यानी जब हमारी घड़ी सुबह के 6 बजती है, तो वह वहां के लोगों के लिए दिन का शून्य या 12वां घंटा होता है।
इथियोपिया कभी भी किसी यूरोपीय देश का गुलाम नहीं रहा, यही वजह है कि इसने अपनी 3,000 साल पुरानी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखा है। 80 से अधिक जातीय समूहों का घर, यह देश अपनी विविधता और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
यहां बता दें कि साल 2012 में भविष्यवाणी की गई थी कि दुनिया खत्म हो जाएगी. साल 2012 में तो उस वक्त कोई बड़ी आपदा नहीं आई थी, लेकिन साल 2019 में पूरी दुनिया में भयानक महामारी देखने को मिली। कोरोना वायरस से दुनिया में करोड़ों लोगों की मौत हो गई.
आपको एक बात जानकर हैरानी हो सकती है कि साल 2019 में इथियोपियाई कैलेंडर में 2012 चल रहा था। यानी ये इस बात का संकेत है कि भविष्यवाणी सच साबित हुई है. क्योंकि, रोमन जनरल जूलियस सीजर द्वारा कैलेंडर बदले जाने से पहले लगभग पूरी दुनिया इथियोपियाई या इसी तरह के कैलेंडर का इस्तेमाल करती थी।