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पाकिस्तान के चार प्रांतों को 12 हिस्सों में बांटने की तैयारी चल रही है. देश के संचार मंत्री अब्दुल अलीम खान ने कहा है कि देश में छोटे प्रांतों का बनना अब तय है. उनका कहना है कि इससे बेहतर प्रशासन को बढ़ावा मिलेगा. अब्दुल अलीम खान रविवार को शेखूपुरा में इस्तेहकाम-ए-पाकिस्तान पार्टी (आईपीपी) के कार्यकर्ता सम्मेलन में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि सिंध और पंजाब में तीन नए प्रांत बनाए जा सकते हैं. ऐसा ही विभाजन बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में भी हो सकता है. अलीम खान ने कहा कि हमारे आसपास के देशों में कई छोटे-छोटे प्रांत हैं. तो पाकिस्तान में भी ऐसा होना चाहिए. अलीम खान की पार्टी आईपीपी पीएम शाहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार का हिस्सा है. कौन से नये प्रांत बनाये जा सकते हैं? पाकिस्तान सरकार की ओर से अभी आधिकारिक नक्शा जारी नहीं किया गया है, लेकिन जिन इलाकों पर चर्चा हो रही है वो इस प्रकार हैं- बिलावल की पार्टी का बंटवारा बनाम शाहबाज सरकार में बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी कीमत पर सिंध के बंटवारे का विरोध करेगी. पीपीपी ने विशेष रूप से सिंध के विभाजन का लंबे समय से विरोध किया है। पिछले महीने सिंध के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि सिंध के हितों के खिलाफ कोई भी कदम स्वीकार नहीं किया जाएगा. सीएम मुराद ने कहा कि नए प्रांतों की अफवाहों पर ध्यान न दें और कोई भी ताकत सिंध को विभाजित नहीं कर सकती। नए प्रांतों की मांग पहले भी उठी है, लेकिन कभी मंजिल तक नहीं पहुंची। 1947 के समय पाकिस्तान में पाँच प्रांत थे। इसमें पूर्वी बंगाल, पश्चिम पंजाब, सिंध, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) और बलूचिस्तान शामिल थे। 1971 में पूर्वी बंगाल अलग होकर वर्तमान बांग्लादेश बन गया। बाद में NWFP का नाम बदलकर खैबर पख्तूनख्वा कर दिया गया। इस बार इस प्रस्ताव को कई थिंक-टैंक और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) जैसी पार्टियों ने भी समर्थन दिया है। कई छोटी पार्टियां भी विरोध में पीपीपी के अलावा कई छोटी पार्टियां भी इस बंटवारे के विरोध में हैं. अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और बलूच राष्ट्रवादी पार्टियों ने इसे ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति बताया. इन लोगों का कहना है कि छोटे प्रांत बनाने से स्थानीय पहचान और संस्कृति कमजोर हो सकती है. बड़े-बड़े प्रान्तों की राजनीतिक शक्ति टूट जायेगी। सेना और केंद्र सरकार की पकड़ मजबूत होगी. इसके अलावा बलूचिस्तान जैसे इलाकों में तनाव और बढ़ सकता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम देश की पहले से ही अस्थिर राजनीति को और अस्थिर कर सकता है। कई राजनीतिक विशेषज्ञ, जिन्हें नए प्रांत बनाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान की सत्ता संरचना में सेना का प्रभाव बढ़ा है। ऐसे में प्रांतों को विभाजित करने का निर्णय प्रशासनिक सुधार के बजाय राजनीतिक नियंत्रण बढ़ाने की रणनीति हो सकती है। नए प्रांत बनाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है और संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है। यदि पाकिस्तान को 12 प्रांतों में विभाजित किया जाता है, तो देश की प्रशासनिक संरचना, राजनीति और संसाधन-बंटवारा पूरी तरह से बदल जाएगा। विशेषज्ञ कहते हैं- अधिक प्रांतों का मतलब है अधिक समस्याएं पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारी और पुलिस अधिकारी सैयद अख्तर अली शाह कहते हैं कि केवल प्रांत बढ़ाने से समस्याएं हल नहीं होंगी। उनके मुताबिक पाकिस्तान की समस्या प्रांतों की संख्या नहीं, बल्कि शासन व्यवस्था की कमियां हैं. यदि इसे ठीक नहीं किया गया तो नए प्रांतों के निर्माण से स्थिति और खराब हो सकती है। अली शाह के अनुसार, कमजोर संस्थाएं, कानूनों का असमान कार्यान्वयन, जवाबदेही की कमी और स्थानीय सरकारों की अशक्तिकरण देश की वास्तविक समस्याएं हैं। थिंक टैंक PILDAT के अध्यक्ष अहमद बिलाल मेहबूब ने भी कहा कि पिछले अनुभव बताते हैं कि प्रशासनिक बदलावों से केवल शिकायतें बढ़ी हैं। उनके अनुसार नए प्रांत बनाना एक महँगा, राजनीतिक रूप से विवादास्पद और जटिल कदम होगा। असली जरूरत स्थानीय सरकारों को मजबूत करने की है।
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पाकिस्तान को 12 राज्यों में बांटने की तैयारी: शाहबाज के मंत्री ने कहा- छोटे प्रांतों से बेहतर होगा शासन; विपक्ष में बिलावल भुट्टो की पार्टी