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बांग्लादेश में अगले साल फरवरी में होने वाले आम चुनाव पर संशय मंडरा रहा है। राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा के कारण चुनाव की तैयारियां रुकी हुई हैं। एक ओर, अवामी लीग (शेख हसीना की पार्टी) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। दूसरी ओर, विपक्षी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) की तैयारियों के बीच जमात-ए-इस्लामी ने चेतावनी दी है कि “सुधार के बिना कोई चुनाव नहीं होगा।” अब संकट सत्तारूढ़ दल से हटकर सेना तक पहुंच गया है. अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के आदेश पर 15 वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी से सेना में खलबली मच गई है. ढाका छावनी के भीतर एमईएस बिल्डिंग 54 को एक अस्थायी जेल घोषित किया गया है जहां इन अधिकारियों को रखा जा रहा है। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सेना प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान का कार्यकाल अगले साल खत्म हो रहा है और सरकार उनके कार्यकाल के दौरान कोई बड़ा संघर्ष नहीं चाहती है। हालाँकि, स्थिति अब नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है और फरवरी में होने वाले चुनाव फिलहाल अधर में लटके हुए हैं। अवामी लीग पर प्रतिबंध से अब सरकार पर दबाव बढ़ गया है बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी, अवामी लीग का पंजीकरण मई 2025 में चुनाव आयोग द्वारा निलंबित कर दिया गया था। शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी और राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध के बावजूद, पार्टी सड़कों पर रैलियां कर रही है। सरकार का दावा है कि ज़मीनी हकीकत कुछ और है. अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे माहौल में चुनाव एकतरफा होंगे. विपक्ष को मौका देने के लिए अब सरकार पर बाहरी दबाव बढ़ रहा है। हिंसा और दंगे जारी, चुनाव खतरे में बांग्लादेश में पिछले 10 महीनों में 253 भीड़ के हमले हुए हैं, जिनमें 163 लोग मारे गए और 312 घायल हुए हैं। धार्मिक हिंसा भी बढ़ी है, खासकर हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थानों (मंदिरों, मस्जिदों) पर हमले। गैर-सरकारी संगठनों का कहना है, ”देश में कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो गई है.” ढाका, चटगांव और सिलहट में झड़पें जारी हैं। बांग्लादेश पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन को अक्सर मदद के लिए सेना पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसी स्थिति में निष्पक्ष चुनाव कराना न केवल मुश्किल है, बल्कि चुनाव सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। राजनीतिक सर्वसम्मति का अभाव, जुलाई चार्टर पर विवाद जुलाई 2024 की क्रांति से उपजे “जुलाई राष्ट्रीय चार्टर” (लोकतंत्र, सुधार और समावेशन) की कानूनी मान्यता की मांगें बढ़ रही हैं। जमात-ए-इस्लामी, नेशनल सिटीजन्स पार्टी (एनसीपी) और इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश जैसी पार्टियों का कहना है कि वे चार्टर लागू किए बिना चुनाव नहीं लड़ेंगी। एनसीपी इसे लोकतंत्र के लिए अनिवार्य बताती है। वहीं बीएनपी का कहना है कि ‘चुनाव की तैयारियां पूरी हैं.’ राजनीतिक सर्वसम्मति के बिना चुनाव बांग्लादेश के लोकतंत्र को गहरे संकट में डाल सकते हैं। प्रमुख मांगें: बांग्लादेशी सेना दो भागों में विभाजित हो गई। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण (आईसीटी) के आदेश पर पंद्रह वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर हुसैन के शासन के दौरान जबरन गायब करने और यातना देने का आरोप लगाया गया था। वह ढाका छावनी में एमईएस बिल्डिंग 54 में एक अस्थायी जेल में बंद है। अधिकारियों पर कार्रवाई से सेना में गुटबाजी उजागर हो गई है. “जनरल रहमान ग्रुप” के नाम से जाना जाने वाला एक समूह सरकार के साथ खड़ा है और मानता है कि सेना को “राजनीतिक स्थिरता के लिए” सरकार के फैसलों का पालन करना चाहिए। मेजर जनरल आरिफ चौधरी के नेतृत्व वाला एक अन्य समूह मांग कर रहा है कि सेना को राजनीति से दूर रखा जाए। यह समूह सेना प्रमुख से अधिकारियों की गिरफ्तारी में हस्तक्षेप न करने पर सवाल उठा रहा है। सेना में दो गुट: बांग्लादेश में चुनाव प्रक्रिया भारत में लोकसभा चुनाव के समान बांग्लादेश में चुनाव प्रक्रिया भारत में लोकसभा चुनाव के समान है। जैसा कि भारत में, संसद के सदस्यों को फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके चुना जाता है। इसका मतलब यह है कि जिस उम्मीदवार को एक भी अधिक वोट मिलता है वह जीत जाता है। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद, सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन के सांसद अपने नेता का चुनाव करते हैं, जो प्रधान मंत्री बनता है। राष्ट्रपति उन्हें पद की शपथ दिलाते हैं। बांग्लादेशी संसद में कुल 350 सीटें हैं। इनमें से 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों के लिए चुनाव नहीं होते हैं, जबकि शेष 300 सीटों के लिए हर पांच साल में आम चुनाव होते हैं। भारत की संसद में लोकसभा और राज्यसभा होती हैं, जबकि बांग्लादेश की संसद में केवल एक सदन होता है। बांग्लादेश में सरकार का मुखिया कौन है? भारत की तरह बांग्लादेश में भी सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री होता है। देश का मुखिया राष्ट्रपति होता है, जिसे राष्ट्रीय संसद द्वारा चुना जाता है। बांग्लादेश में राष्ट्रपति केवल एक औपचारिक पद है और उसका सरकार पर कोई वास्तविक नियंत्रण नहीं होता है। 1991 तक यहां राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता था, लेकिन बाद में संवैधानिक बदलाव कर राष्ट्रपति को संसद द्वारा चुने जाने की अनुमति दे दी गई। शेख हसीना ने 20 वर्षों तक बांग्लादेश की प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया।
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टल सकते हैं बांग्लादेश के फरवरी चुनाव: 15 अफसरों की गिरफ्तारी से सेना नाराज; इस्लामिक पार्टी ने कहा- सुधारों के बिना नहीं होंगे चुनाव