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चीन की नजर रूस के साइबेरियाई क्षेत्र व्लादिवोस्तोक और अमूर ओब्लास्ट के एक द्वीप पर है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह इन दोनों इलाकों पर नियंत्रण के लिए अपना दावा मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक के मुताबिक, चीन सरकार रूस से लगी सीमा के पास कृषि भूमि खरीद रही है और पट्टे पर दे रही है। वर्तमान समय में ऐसे मामले बढ़ गए हैं। ये दोनों क्षेत्र पहले चीन के किंग साम्राज्य का हिस्सा थे। करीब 150 साल पहले 19वीं सदी में किंग राजवंश ने ये दोनों इलाके रूसी साम्राज्य को सौंप दिए थे। चीन के हालिया कदमों से ऐसी अटकलें तेज हो गई हैं कि वह एक बार फिर इन इलाकों पर अपना दावा कर सकता है। 150 साल पहले चीन को इलाके छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था 19वीं सदी में चीन बहुत कमजोर था। अफ़ीम युद्ध में यह ब्रिटेन और फ़्रांस से हार गया। रूस ने इस स्थिति का लाभ उठाया। रूस प्रशांत महासागर तक पहुंच चाहता था, जहां तक चीन के सुदूर पूर्वी क्षेत्रों के माध्यम से पहुंचा जा सकता था। 1858 में रूस ने चीन के साथ एगुन की संधि पर हस्ताक्षर किये। इससे रूस को अमूर नदी के उत्तर में एक बड़ा क्षेत्र मिल गया। 1860 में चीन एक और युद्ध हार रहा था। इसी समय रूस ने पुनः दबाव डाला। चीन को डर था कि रूस पश्चिम का साथ देगा, इसलिए दबाव में आकर उसने पेकिंग की संधि पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के बाद व्लादिवोस्तोक और आसपास का पूरा क्षेत्र रूस का हिस्सा बन गया। रूस ने जल्द ही वहां अपना प्रशासन स्थापित किया और 1860 में व्लादिवोस्तोक शहर की स्थापना की। रूस की सुरक्षा एजेंसी ने चीन को लेकर दी चेतावनी न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस की सुरक्षा एजेंसी FSB ने चीन से जुड़ा एक दस्तावेज तैयार किया है। दस्तावेज़ के अनुसार, भले ही राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दुनिया के लिए मित्रवत दिखते हों, लेकिन रूस को आंतरिक रूप से संदेह है कि चीन उसकी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहा है। दस्तावेज़ में कहा गया है कि दोनों देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच गुप्त युद्ध चल रहा है. 8 पन्नों के दस्तावेज़ में चीन को भी दुश्मन बताया गया है और इसे रूस की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा बताया गया है। चीन पहले ही रूसी इलाकों को अपने नक्शे में दिखा चुका है. 2023 में चीन के पर्यावरण मंत्रालय ने नये सरकारी मानचित्र जारी किये। इसमें कुछ रूसी शहरों को चीनी नामों से दिखाने का निर्देश दिया गया। इसमें रूस का पूर्वी शहर व्लादिवोस्तोक भी शामिल है. इन नक्शों में एक द्वीप को पूरी तरह से चीनी क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था. उस्सुरी और अमूर नदियों के संगम पर स्थित द्वीप पर दोनों देशों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। दोनों देशों ने 2008 में एक संधि के तहत इस द्वीप को बांट दिया। रूस और चीन के बीच 4200 किमी लंबी सीमा है। इस सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच कई बार तनाव पैदा हो चुका है. 1960 के दशक में सीमा विवाद के चलते दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने भी आ गए थे, जिसमें गोलीबारी भी हुई थी. बाद में 1990 और 2000 के दशक में कई समझौते हुए और अधिकांश विवादों का समाधान हो गया। चीन में रूस से क्षेत्र वापस लेने की मांग चीनी राष्ट्रवादी अक्सर रूस को सौंपे गए क्षेत्र वापस लेने की मांग करते हैं। हालाँकि, बीजिंग आधिकारिक तौर पर इन दावों पर चुप रहा है और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपने मजबूत संबंधों पर जोर दिया है। यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस पर कड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे तो चीन ने रूस से ऊर्जा खरीदकर उसे बड़ी राहत दी। बदले में रूस ने व्यापार बढ़ाकर और युआन भुगतान को अपनाकर आर्थिक दबाव कम किया। दोनों देशों ने प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त सैन्य अभ्यास भी बढ़ाया है, जिसे अमेरिका और उसके सहयोगी एक चुनौती के रूप में देखते हैं। लेकिन रूस के भीतर इस बात की भी चिंता है कि कहीं वह चीन का जूनियर पार्टनर तो नहीं बनता जा रहा है.
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चीन रूसी भूमि को जब्त करने के प्रयास में सीमा के पास भूमि पट्टे पर दे रहा है; 150 साल पहले छोड़ने को हुआ था मजबूर